5/14/2009


तेरी आँखों से ही खुलते हैं सवेरो के उफ़ाक़
तेरी आँखों से ही बंद होती है ये सीप की रात
तेरी आँखें हैं या सजदे मैं है मासूम नमाज़ी
पलकें खुलती हैं तो यूँ गूँज के उठती है नज़र
जैसे मंदिर से जरास की चले नमनाक हवा
और झुकती हैं तो बस जैसे अज़ान ख़त्म हुई हो
तेरी आँखें, तेरी ठहरी हुई गमगीन सी आँखें
तेरी आँखों से ही तखलीक़ हुई है सच्ची
तेरी आँखों से ही तखलीक़ हुई है ये हयात

- गुलज़ार

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